राजस्थान पल्स न्यूज
जहाँ पुरे देश में जन्माष्टमी मानाने की परंपरा रात को मनाने की है वही राधारानी की नगरी वृन्दावन में दो ऐसे मंदिर है। जहाँ जन्माष्टमी का पर्व दिन में मनाया जाता है। पहला है राधारमण मंदिर और दूसरा राधा दामोदर मंदिर।
राधारमण मंदिर
सप्त देवालयों में प्रसिद्ध राधारमण मंदिर मे मंदिर के सेवायत लाला को दीर्घजीवी होने का आशीर्वाद भी वर्ष में एक बार जन्माष्टमी के दिन देते है तथा इस मन्दिर से चरणामृत गृहण कर ही वे व्रत की शुरूआत करते हैं। मंदिर में दिन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने की परंपरा मंदिर के प्रथम सेवायत और संस्थापक गोपाल भट्ट गोस्वामी ने डाली थी। उनका कहना था कि वास्तव में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी लाला की वर्षगांठ है जो दिन में कभी भी मनाई जा सकती है। उनका यह भी कहना था कि लाला को रात 12 बजे जगाकर जन्माष्टमी मनाना ठीक नही है। यहाँ जन्माष्टमी पर 27 मण पंचामृत बनाकर लाला का अभिषेक किया जाता है जिसके लिए कुछ समय पहले ही गाँवों में धनराशि देकर दूध की व्यवस्था कर ली जाती है इस मंदिर में परंपरागत श्रीकृष्ण जन्म मनाने के साथ ही सेवायत एक दूसरे पर हल्दी मिश्रित दही को इस प्रकार से डालते हैं जिस प्रकार से होली पर रंग डाला जाता है।
राधा दामोदर मंदिर
राधा दामोदर मंदिर में जन्माष्टमी निराले तरीके से मनाई जाती है। इस मंदिर में होने वाले अभिषेक कार्यक्रम में अप्रत्यक्ष रूप से भक्तो को शामिल किया जाता है जो लाला के अभिषेक के लिए दूध दही या पंचामृत की सामग्री लाते है उसे वहां उपस्थित पंचामृत में मिला लिया जाता है। इस मन्दिर में पांच विगृहों का अभिषेक किया जाता है इसलिए यहां भी अभिषेक कार्यक्रम वैदिक मंत्रों के मध्य कई घंटे तक चलता है। अभिषेक के बाद जहां चरणामृत को मन्दिर में उपस्थित भक्तों में वितरित कर दिया जाता है वहीं श्रीकृष्ण जन्म की खुशी में सभी सेवायत एक दूसरे पर हल्दी मिश्रित पंचामृत डालते हैं और प्रसन्नता से नाच उठते हैं। इन दो मंदिरो में दिन में जन्माष्टमी मनाने के कारण स्थानीय भक्तो के अलावा तीर्थयात्रियों का समूह जन्माष्टमी मनाने आता है जिससे पूरा वृन्दावन कृष्ण भक्ति से सरोबार हो जाता है।