देवेंद्र शर्मा, राजस्थान पल्स न्यूज़
प्रथम पूज्य आराध्य देव भगवान श्री गणेशजी का राजसमंद जिला मुख्यालय पर स्थित श्री मंशापूर्ण महा गणपति का प्राचीन मंदिर अपने आप में विशिष्ट और दुर्लभ है। मंदिर में विराजित भगवान गणेश की विशाल पाषाण की प्रतिमा भारत में दुर्लभ ही देखने को मिलती है। भगवान गणेश के इस मंदिर में भक्तों की मनोकामना हमेशा पूर्ण होती हैं, यही कारण है कि यह मंदिर मंशापूर्ण गणपति के नाम से प्रसिद्ध है।
आपको बता दें कि राजसमंद जिला मुख्यालय के राजनगर स्थित नौ चोकी मार्ग पर श्री मंशापूर्ण महागणपति मंदिर में एक ही पाषाण की शिला पर चतुर्भुज धारी भगवान गणेशजी के साथ रिद्धि-सिद्ध, शुभ-लाभ, गले में सर्प स्वरूप यज्ञोपवीत और मूषक की सवारी है। भगवान गणेश का दाहिना पांंव आगे की तरफ निकला हुआ है। जो सदैव भक्तों के कार्य सिद्धि और मनोकामना पूर्ण करने का संकेत है। यही नही चतुर्भुज धारी वृहद हस्त से भक्तों को आशीर्वाद दे रहे है दूसरे हाथ में लड्डू, तीसरे में फरसा और चौथे में अंकुश है। सभी विशेषताएं गणेश की प्रतिमा में मौजूद है।
मंदिर में एक ही पाषाण की शिला पर चतुर्भुजधारी भगवान गणेशजी के साथ उनका परिवार है।बताया जाता है कि भगवान गणेश के इस मंदिर में भक्तों की मनोकामनाएं हमेशा पूर्ण होती है। यही कारण है कि यह मंदिर मंशापूर्ण गणपति के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर के पुजारी का कहना है कि मेवाड़ के महाराणा राज सिंह ने मंशापूर्ण गणपति का नामबड़ी था। पुजारी ने बताया कि जिस स्थान पर आज मंदिर बना हुआ है रियासत काल में कभी यहां पर गोमती नदी बहा करती थी। जब महाराणा राज सिंह ने राजसमंद झील का निर्माण शुरू किया था, तो उन्होंने सबसे पहले प्रभु गणपति की स्थापना की थी और प्रतिमा को नदी में ही विराजित किया गया था। जिससे कि झील निर्माण पर प्रभु की सीधी नजर रह सके।
जब राजसमंद झील का निर्माण पूरा हुआ तो महाराणा ने कहा था कि भगवान ने सिर्फ एक मोदक के प्रसाद में राणा राज सिंह की झील निर्माण की इच्छा को पूरा कर दिया। ऐसे ही राजसमंद शहर के निवासियों की मनोकामना भी यह मंशापूर्ण गणपति सदा पूरी करेंगे।