Sunday, November 24

देवेंद्र शर्मा, राजस्थान पल्स न्यूज़

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म यानि जन्माष्टमी पर्व देशभर में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। देशभर के मंदिरों में अलग अलग तरिके से जन्माष्टमी पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिरों से दो दिन पहले से ही सजावट शुरू हो जाती है और मंदिरों की सजावट आकर्षण का केंद्र रहता है। ऐसे में राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित दो विश्व प्रसिद्ध मंदिरों में जन्माष्टमी पर्व की बड़े स्तर पर धूम देखी जाती है। जहां पर देश से ही नहीं विदेश से भी श्रद्धालु यहां पर आते हैं और जन्माष्टमी पर्व में शामिल होते हैं। सबसे खास बात इन दोनों मंदिरों में आज भी बंदूक और तोप से प्रभु को सलामी दी जाती है।

बता दें कि प्रभु श्रीकृष्ण के जन्म पर कांकरोली स्थित श्रीद्वारिकाधीश मंदिर में पांच बंदूकधारियों द्वारा 21 बार बंदूक चलाकर सलामी दी जाती है। तो वहीं नाथद्वारा स्थित प्रभु श्रीनाथजी मंदिर में प्रभु के जन्म के समय दो तोपो को 21 बाद दागा जाता है। बता दें ​कि मंदिर के पास रिसाला चौक में जन्माष्टमी के समय में ही इन दोनों तोपो को बार निकाला जाता है। इस महोत्सव को लेकर श्री द्वारकाधीश मंदिर में कई तरह के विशेष आयोजन होते हैं।

जन्माष्टमी के दिन सुबह मंगला दर्शन के बाद प्रभु द्वारकाधीश का पंचामृत स्नान होता है जिसमें प्रभु श्री द्वारकाधीश को दूध, दही, घी, शक्कर और जल से पंचामृत स्नान करवाया जाता है। इसके बाद प्रभु द्वारकाधीश का विशेष श्रंगार किया जाता है। श्रृंगार के दर्शन में प्रभु द्वारिकाधीश को तिलक धराया जाता है। तो वहीं राजभोग के दर्शन में द्वारकेश पलटन और द्वारकेश बैंड द्वारा प्रभु को सलामी दी जाती है। दोपहर तक के सभी नियमित दर्शनों के पश्चात शाम को प्रभु द्वारकाधीश के जागरण के दर्शन खुलते है। रात्रि 11:45 बजे यह दर्शन बंद होते हैं। इसके बाद मंदिर पुरोहित द्वारा ग्रहों की गणना वह स्थिति के आधार पर प्रभु जन्म का समय निर्धारित होता है और उस पर प्रभु के जन्म के दर्शन खुलते हैं जो 12 बजे बाद होते हैं।

यहां द्वारकेश गार्ड द्वारा बंदूकों की सलामी के साथ प्रभु के जन्म उद्घोषणा होती है और प्रभु के दर्शन खुलते हैं यह दर्शन जन्म के दर्शन कहलाते हैं। इन दर्शनों में ही प्रभु के छोटे स्वरूप शालिग्रामजी का पंचामृत स्नान किया जाता है। जन्माष्टमी के दूसरे दिन यानि मंगलवार को नंद महोत्सव मनाया जाता है। इस नंद महोत्सव में प्रभु द्वारकाधीश को सोने के पलने में विराजित कर झूला झुलाया जाता है। प्रभु के सम्मुख कई तरह के सोने-चांदी और लकड़ी से बने खिलौने चलाए जाते हैं। वही ग्वाल, बाल, दूध, दही की होली खेलते हैं ऐसे में पूरे मंदिर परिसर में नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की के जयकारों से गूंज उठता है। दूर-दूर से लोग इस अद्भुत नजारे के दर्शन करने के लिए द्वारकाधीश मंदिर की तरफ दौड़े चले आते हैं। 2 दिन के इस अद्भुत महोत्सव में हजारों श्रद्धालु कृष्ण जन्मोत्सव के आनंद से सराबोर होते हैं।

Exit mobile version