संकलन: रानी जोशी, राजस्थान पल्स न्यूज़
स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी संख्या में महिला सेनानियों ने भी अपनी भागीदारी निभाई है। जिनकी संख्या हज़ारों से भी ज़्यादा है। हम स्वतंत्रता दिवस पर विशेष रूप से पाठकों के लिए यहां कुछ चुनिंदा राजस्थान की वीरांगनाओं का उल्लेख कर रहे हैं। यह उनको एक श्रद्धांजलि होगी।
स्वतंत्रता संग्राम उतरी थी राजस्थान की यह वीरांगनाएं
स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्णिम गाथा में महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बॉस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाला लाजपतराय, बालगंगाधर तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के नाम स्वर्ण अक्षरों में इतिहास में अंकित है। वहीं कई ऐसी वीरांगनाएं भी हुई है, जिन्होंने भी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी निभाई है। ऐसी कुछ विरली शख्सियतों का यहां उल्लेख किया जा रहा है। हम आपका परिचय राजस्थान के ऐसे नामों से करवाने जा रहे है जो शायद गुमनाम है या बहुत कम लोग ही उनके बारे में जानते है ।
महिला सशक्तिकरण की आवाज उठाई : जानकी देवी बजाज
जानकी देवी बजाज एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्त्ता और राजस्थान की प्रमुख महिला सेनानियों में से थी, जिन्होंने आधुनिकता को आत्मसात करके जड़ हो चुकी परम्पराओं को तिलांजलि दे दी। जानकी देवी ने न केवल अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई लड़ी बल्कि महिला सशक्तिकरण के लिए भी आवाज़ उठाई। वह सेठ जमनालाल बजाज की पत्नी थी उन्होंने विनोबा भावे के सानिध्य में गौसेवा और संरक्षण के लिए भी कार्य किया। 1932 में अंग्रेजो ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए उन्हें जेल में डाल दिया था इसके बावजूद उन्होंने देश की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी। 1956 में जानकी देवी को “पद्मभूषण” से सम्मानित किया गया, पद्म भूषण प्राप्त करने वाली वह पहली राजस्थानी महिला थी।
किसान आंदोलन की नायक : दुर्गावती शर्मा
दुर्गा देवी एक सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रता सेनानी और शेखावाटी किसान आंदोलन की नायक थी। वे झुंझनू के पचेरी बड़ी गांव के स्वतंत्रता सेनानी पंड़ित ताड़केश्वर शर्मा की पत्नी थी। शेखावाटी की महिला सत्याग्रहियों का प्रथम जत्था दुर्गावती शर्मा के नेतृत्व में 18 मार्च 1939 में पहुँचा।
सामंती अत्याचारों के खिलाफ किया विद्रोह : अंजना देवी चौधरी
राजस्थान के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी राम नारायण चौधरी की पत्नी जिन्होंने अपने पति के साथ अपनी सारी सम्पति राष्ट्र सेवा के लिए गांधी जी के सामने अर्पित कर राष्ट्र सेवा का संकल्प लिया। वह प्रथम कोंग्रेसी महिला थी जिन्होंने सामंती अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह किया। उन्होंने बिजोलिया में 500 महिलाओं के जुलूस का नेतृत्व करते हुए गिरफ़्तारी दी। कांग्रेस के नमक सत्याग्रह में 1930 में उन्हें 6 महीने का कारावास झेलना पड़ा।
महिलाओं की मुखर आवाज बनी : किशोरी देवी
सरदार हरलाल सिंह की धर्मपत्नी किशोरी देवी ने सीहोर के ठाकुर मानसिंह द्वारा सुखिया का बास नामक गांव में किसान महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार के विरोध में एक विशाल महिला सम्मेलन आयोजित किया तथा उसकी अध्यक्षता की। 25 अप्रैल 1934 को कटराथल में हुए इस सम्मेलन में लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया था। सम्मेलन को रोकने के लिए सीकर में धारा 144 लागू कर दी इसके बाद भी सारे नियम तोड़कर महिलाओं की बैठक हुई। श्रीमती रमा देवी , श्रीमती फूलन देवी, श्रीमती दुर्गादेवी शर्मा, श्रीमती उत्तम देवी भी इस बैठक की प्रमुख प्रतिभागियों में थी।
प्लेग में दिखाया सेवा का जज्बा : नारायणी देवी वर्मा
राजस्थान के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी श्री माणिक्य लाल वर्मा की धर्मपत्नी जिनका राजस्थान की महिला स्वतंत्रता सेनानी में अग्रणी स्थान है उन्होंने देश में प्लेग के समय बहुत सहायता की। 14 नवम्बर 1944 में भीलवाड़ा में एक महिला आश्रम की स्थापना की और 1952-53 में उन्होंने वर्मा जी के साथ मिलकर “आदिवासी कन्या महाविद्यालय ” का भी निर्माण करवाया।
सक्रिय सत्याग्रह की भागीदार रही : रतन देवी शास्त्री
रतन देवी शास्त्री वनस्थली विद्यापीठ की संस्थापक एवं राजपुताना महिलाओं में प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थी, उन्होंने अपने पति हीरालाल शास्त्री (राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री) के साथ 1939 में जयपुर राज्य प्रजामण्डल के सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भूमिका निभाई। उन्होंने गांधीवादी विचारो से प्रभावित होकर सिर्फ खादी पहनना शुरू कर दिया और अपने आभूषण बेच दिए उन्होंने अपने लिए नाक की बाली और कंगन तक को नहीं रखा। रतन देवी ने उन स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों की सेवा की थी जो छिप गए थे और सड़कों पर उतरकर भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था।
खड़ा किया अनाज आंदोलन : विजया बहन भावसार
एक विधवा ब्राह्मण नवयुवती थी, जिनसे बांसवाड़ा के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी धूलजी भाई भावसार ने 1936 में विवाह कर अंतरजातीय और विधवा विवाह का आदर्श प्रस्तुत किया। विजया बहन के नेतृत्त्व में प्रजामण्डल का सहयोगी संगठन “महिला मंडल” गठित किया गया। बांसवाड़ा शहर में हुए अनाज आंदोलन में इनके नेतृत्व में महिलाओं ने भी धारा 144 का उल्लघन करके जुलूस निकला।