Saturday, November 23
विधानसभा में अब आरक्षण छोडऩे की उठी बात
जयपुर, राजस्थान पल्स न्यूज

काफी समय से यह विवाद चल रहा है कि आदिवासी समुदाय के लोग हिंदू हैं या नहीं। प्रदेश में समुदाय के ऐसे कई राजनेता हैं जो लंबे समय से यह दावा करते आ रहे हैं कि आदिवासी समुदाय के लोग हिंदू नहीं हैं। वे सिर्फ आदिवासी हैं, उन्हें मानव निर्मित किसी धर्म में नहीं बांटा जा सकता है। सडक़ पर आंदोलन के साथ अब यह आवाज सदन तक बुलंद हो चुकी है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश की विधानसभा में वर्तमान में आदिवासी समुदाय के तीन विधायक जो बाप (भारतीय आदिवासी पार्टी) के हैं। ये तीनों विधायक आदिवासी समुदाय को हिंदू मानने को तैयार नहीं हैं। दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टी भाजपा के विधायक समाराम गरासिया ने भारत आदिवासी पार्टी के विधायकों के दावे पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। विधायक गरासिया ने कहा है कि अगर आदिवासी समुदाय हिंदू नहीं हैं तो अनुसूचित जनजाति श्रेणी के आरक्षण का लाभ क्यों ले रहे हैं।

राजनीतिक सूत्रों के अनुसार विधायक समाराम गरासिया सिरोही जिले के पिंडवाड़ा आबू से भाजपा के विधायक हैं। वे भी आदिवासी समुदाय से आते हैं। जब सदन में भील प्रदेश बनाने की मांग उठी थी तो समाराम गरासिया ने भी बड़ा बयान दे दिया। गरासिया ने कहा है कि ‘हर आदिवासी हिंदू है, क्योंकि हिंदू वही है, जो सनातन से चला आ रहा है। आदिवासी भी सनातनी है। ऐसे में आदिवासी समुदाय के सभी लोग हिंदू ही हैं। गरासिया ने कहा कि जो आदिवासी अपने आपको हिंदू नहीं मान रहे हैं उन्हें अनुसूचित जनजाति श्रेणी के आरक्षण का लाभ छोड़ देना चाहिए क्योंकि ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय के लोगों को आरक्षण हिंदू होने के आधार पर ही दिया गया है।

भाजपा विधायक समाराम गरासिया ने कहा है कि आदिवासी समुदाय के कई लोग अपना धर्म परिवर्तन कर लेते हैं और जनजाति वर्ग के आरक्षण का लाभ भी लेते रहते हैं। उन्होंने कहा है कि ऐसे लोगों की जांच होनी चाहिए जो धर्म परिवर्तन के बाद भी आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। उन्हें जनजाति वर्ग की सूची से हटा दिया जाना चाहिए। किशनगंज से बीजेपी विधायक ने भी कहा है कि जो लोग अपना धर्म परिवर्तन करते हैं और खुद को हिंदू नहीं मानते हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि जनजाति का आरक्षण केवल हिंदुओं को ही दिया गया है।

वहीं कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने इस मुद्दे को पूरी तरह से राजनीतिक करार दिया है। उनके अनुसार आदिवासी समाज के राजनेता राजनीतिक लाभ लेने के लिए इस प्रकार के दावे कर रहे हैं। जाति के आधार पर राज्यों का बंटवारा नहीं हो सकता है।

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