बीजेपी-कांग्रेस का छोड़ा साथ, अब छाये संकट के बादल
जयपुर, राजस्थान पल्स न्यूज़
खींवसर विधानसभा सीट पर उपचुनाव काफी रोमांचक होने वाला है। इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. रतन चौधरी, बीजेपी के रेवंतराम डांगा और आरएलपी की प्रत्याशी कनिका बेनीवाल के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा। ऐसे में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल के लिए प्रतिष्ठा की जंग बन गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार कांग्रेस और भाजपा ने चुनावी रणनीति के तहत हनुमान बेनीवाल को अकेले चुनाव मैदान में उतारकर उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। ऐसे में इस त्रिकोणीय मुकाबले में बेनीवाल को अपनी सीट बचाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।
खींवसर सीट राज्य की उन विधानसभा सीटों में से है, जहां कांग्रेस और भाजपा के लिए जीत का कोई खास महत्व नहीं है। क्योंकि पिछले कई वर्षों से ये विधानसभा क्षेत्र हनुमान बेनीवाल के प्रभाव में है। इस उपचुनाव में ये सीट आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल के लिए उनकी राजनीतिक अस्तित्व का सवाल बन गई है। नवंबर, 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में आरएलपी ने केवल यही एक सीट जीती थी। ऐसे में इस बार की हार का मतलब होगा आरएलपी का विधानसभा से सफाया होना।
कांग्रेस से गठबंधन होना आरएलपी सुप्रीमो बेनीवाल की मुश्किलें कम करने के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता था। लेकिन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा से उनकी पुरानी राजनीतिक रंजिश के चलते ऐसा हो नहीं सका। माना जा रहा है कि डोटासरा ने ही आलाकमान को गठबंधन न करने की सलाह दी, ताकि हनुमान बेनीवाल को उनके ही गढ़ में घेरा जा सके। दूसरी तरफ, भाजपा ने रेवताराम डांगा को एक बार फिर चुनावी मैदान में उतार दिया है। पिछले विधानसभा चुनाव में रेवंतराम डांगा महज 2 हजार कुछ वोटों के मामूली अंतर से हनुमान बेनीवाल से पराजित हुए थे। इस बार वे पूरी तैयारी के साथ चुनाव मैदान में हैं। प्रदेश में भाजपा की सरकार होने का एडवांटेज भी उन्हें मिल सकता है।
इस त्रिकोणीय मुकाबले में आरएलपी सुप्रीमो बेनीवाल किस तरह से अपनी रणनीति बना पाते हैं, यह देखना काफी दिलचस्प होगा। गठबंधन के बिना उन्हें अपनी सीट बचाने के लिए निश्चित रूप से कोई नया दांव खेलना होगा। बेनीवाल को इस बार खींवसर के मतदाताओं को रिझाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना ही होगा। हाल ही में अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए हनुमान बेनीवाल ने कहा था कि ‘यदि हम यह चुनाव हार गए तो आरएलपी का एक भी सदस्य विधानसभा में नहीं होगा और लोग कहेंगे आरएलपी साफ हो गई।’ इस बयान से साफ है कि बेनीवाल इस चुनाव को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं।
कुल मिलाकर खींवसर विधानसभा उपचुनाव हनुमान बेनीवाल के लिए एक अग्निपरीक्षा से कम नहीं समझा जा सकता है। कांग्रेस और भाजपा के बीच फंसे हनुमान बेनीवाल को अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए आगे बढ़ना होगा। देखना यह होगा कि वे इस चुनौती से कैसे पार पाते हैं और क्या वो अपनी सीट बचा पाते हैं या नहीं?