Sunday, November 24

बीकानेर, टीम राजस्थान पल्स न्यूज़

स्वतंत्रता आंदोलन की तरह ही गोवा मुक्ति आंदोलन में भी बीकानेर के कई जांबाजों ने भागीदारी निभाई। आंदोलन में संघर्ष किया। यहां प्रस्तुत है चुनिंदा सैनानियों का उल्लेख। यह सत्यनारायण हर्ष के स्वयं लिखे स्मरण दस्तावेजों पर आधारित है। इनमें से संक्षिप्त विवरण यहां दे रहे हैं।

पुर्तगालियों से लिया लोहा : सत्यनारायण हर्ष / झंवरलाल हर्ष
बीकानेर की पैदाइश सत्यनारायण हर्ष और उनके दोस्त झंवरलाल हर्ष ने गोवा मुक्ति आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। बीकानेर से पांच साथियों का दल आंदोलन में कूद पड़ा और पुर्तगाली सैनिकों के सामने डटे रहे। सेनानियों के परिजनों से मिली जानकारी के अनुसार जब 1946 को गोवा मुक्ति आंदोलन की आंच धीरे-धीरे राजस्थान की ओर आने लगी, तब उस दौर में डॉ. राम मनोहर लोहिया और एनजी गोरे की गिरफ्तारी हो गई। उसके साथ ही आंदोलन भड़क गया। उसका असर राजस्थान तक हुआ। जन नायक मुरलीधर व्यास ने बीकानेर के लोगों से इस आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया। इससे प्रेरित होकर सत्यनारायण हर्ष उनके साथ हो गए।

इसके बाद 12 अगस्त 1955 को मोहता चौक में एक सभा हुई इसमें मुरलीधर व्यास का संबोधन हुआ। इसी दौरान बीकानेर के ही झंवरलाल हर्ष और भैरुदत्त भारद्वाज भी उनके साथ जुड़ गए। इसके बाद निकले जुलूस का लोगों ने रेलवे स्टेशन तक स्वागत किया। ट्रेन से जब पलाना तक पहुंचे तो एक साथी भैरुदत्त चौधरी और शामिल हो गए। इसके बाद पांचों साथी जयपुर में 13 अगस्त 1955 को लोकनायक जयनारायण व्यास से मिले और उनका आशीर्वाद लिया। वहां से भगवती देवी के नेतृत्व में एक जत्था सीधे बेलगांव तक रेल में रवाना हो गया।

रास्ते में लोगों का सहयोग मिलता गया। बेलगांव पहुंचने पर इन जांबाजों का सम्पर्क डॉ. राम मनोहर लोहिया से हुआ। वहां आंदोलन के कारण रेल और सड़क मार्ग बंद थे। लिहाजा सभी लोग कैसल लॉक स्थित गोवा विमोचन समिति के कार्यालय तक पहुंचे। जहां मथुरा से आया जत्था भी इनके साथ शामिल हो गया। अब पूरा दल त्यागी बाबा और मनोज गुहा के नेतृत्व में रवाना हुआ लेकिन यह मार्ग बड़ा ही दुर्गम था, जो जंगल, पहाड़ों से होकर गुजरता था, इस रास्ते पैदल ही निकले थे। इसी बीच जहां तक मुम्बई की सीमा थी, वहां पुलिस ने इस जत्थे को रोकना चाहा, लेकिन जोश और नारों के साथ सभी लोग गोवा की मुक्ति की चाह लेकर आगे बढ़ते गए।

जब सुरंग में चली गोली
गोवा मुक्ति के लिए जी जान लगाने वाले दीवाने जब एक सुरंग में घुसे तो उसके ऊपर ही एक पुर्तगाली था, उसने आगे सूचना भेज दी। सुरंग में प्रवेश करने से पहले ही सभी को यह आदेश था कि यदि गोली चले तो सभी लेट जाना, इस दौरान यदि कोई साथी घायल हो जाए तो उसको बाहर भी लाना होगा। इन सत्याग्रहियों के पास हथियार के नाम पर महज कुछ तिरंगे ही थे। वो ही उनकी प्रेरणा थे, जिससे उनको बल मिल रहा था। दूसरी ओर पुर्तगाली सैनिकों का बड़ा लवाजमा था। अचानक से फायरिंग शुरू हो गई। उस समय सत्यनारायण हर्ष के साथी भैरुदत्त भारद्वाज के हाथ और पेट में गोली भी लगी।

फायरिंग बंद होने पर जब अंधेरी सुरंग से घायल साथियों को लेकर बाहर निकले तो पता चला कुछ साथी शहीद भी हो गए हैं। हालांकि वापसी में मुम्बई पुलिस से मदद भी मिली, तभी बेलगांव तक पहुंच सके। वहीं पर घायलों का उपचार कराया। शहीदों का अंतिम संस्कार किया गया, इसमें बेलगांव की आम आवाम भी शामिल हुई। जनता में पुर्तगालियों के प्रति आक्रोश और नफरत थी। इस घटना के बाद पांचों साथी 20 अगस्त 1955 को बीकानेर पहुंचे। जहां पर भारी जन समुदाय ने स्वागत किया। इसके बाद साथी भैरुदत्त भारद्वाज को अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहीं सत्यनारयण हर्ष और चारों साथी मुरलीधर व्यास के नेतृत्व में जुलूस के रूप में रतन बिहारी पार्क पहुंचे। जहां पर सभा आयोजित की गई। इसी दौरान मुरलीधर व्यास ने अस्पताल से साथी भैरुदत्त को बुलाया लोगों को उनके घाव दिखाए, फिर उनको अस्पताल भेज दिया। जनता ने भी स्वागत सत्कार किया। लंबे समय तक गोवा मुक्ति की लड़ाई के चर्चे लोगों की जुबान पर रहे।

यह था गोवा मुक्ति आन्दोलन
इसका आशय उस सम्पूर्ण संघर्ष से है जो गोवा को पुर्तगाल से मुक्त कराने के लिए किया गया था। जब भारत के बड़े क्षेत्र पर अंग्रेज शासन कर रहे थे तब गोवा, दमन और दीव पर पुर्तगाल का शासन था। यह संघर्ष 19वीं शताब्दी में ही छोटे स्तर पर शुरू हो चुका था लेकिन 1940 से 1961 के बीच बहुत प्रबल आन्दोलन के रूप में आ गया। अन्ततः दिसम्बर 1961 में भारतीय सेना के तीनों अंगों ने मिलकर गोवा को मुक्त करा लिया।

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