बीकानेर, राजस्थान पल्स न्यूज।
“दीयाळी रा दीया दीठा, काचर-बोर-मतीरा मीठा’ कहावत इन दिनों यहां साकार हो रही है। दीपोत्सव को लेकर आज भी मिट्टी के दीपक खरीदने की परम्परा है। दीवाली पर पूरे शहर में दीयों की रोशनी से जगमगाहट रहेगी। वहीं ऐसी मान्यता भी है कि लक्ष्मी पूजन में यहां का देसी फल मतीरा और काचर भी रखें जाते हैं। इन दिनों बाजारों में मतीरों और काचर भी भरमार है।
दीवाली अब महज सात दिन दूर है ऐसे में मिट्टी से बने दीयो की मांग भी बढ़ गई है। लोग दीपोत्सव से एक-दो दिन पहले ही दियो की खरीदारी करते हैं। आजकल मिट्टी से बने पारम्परिक दियो के साथ फैन्सी डिजाइन में बने दियो की भी बहुत मांग हो गई है। अपने हाथों से मिट्टी को आकार देने वाले लोग भी इस सीजन का इंतजार करते हैं। ताकि उन्हेंअच्छी आमदनी हो सके।
फैन्सी आइटम बाहर से आते हैं
बीकानेर में भी बड़ी संख्या में मिट्टी से बने फैन्सी दीपक आने लगे हैं। बाजारों में कुंभकारों के पास साधारण दियों के साथ ही फैन्सी दीपक भी है। शहर में कई स्थानों पर फैन्सी दीपकों से बाजार अटा है। यह गुजरात और अन्य शहरों से आते हैं। आजकल युवा पीढ़ी डिजाइनदार रंग-बिरंगे दीये ज्यादा पसंद कर रहे हैं। साथ ही लाइटिंग का प्रचलन भी बढ़ गया है।
लोकल फॉर वोकल का संदेश भी कारगर
आमजन के बढ़ते रुझान और मिट्टी के दीयों की बढ़ती डिमांड को देखते हुए कुंभकारों के चाक की रफ्तार भी गति पकड़ते देखी जा रही है। कुम्हारों के मोहल्ले में महिलाएं, पुरुष और परिवार के सभी लोग मिट्टी के दीये बनाने में दिन-रात जुटे हुए हैं। इन कुंभकारों को उम्मीद है कि जिस प्रकार अयोध्या में राम मंदिर प्रांगण में 2 लाख दीये जगमग करेंगे, वैसे ही यहां भी भक्तगण मंदिरों में मिट्टी से बने दियों से दीपावली पर उजियारा करेंगे। जिससे उनकी आमदनी में भी कुछ बढ़ोतरी हो सकेगी। हालांकि बाजार में चाइनीज लाइटिंग और रेडीमेड दीपक के चलन से कुम्हार परिवार की चिंताएं जरूर कुछ बढ़ी हैं, लेकिन सरकार के लोकल फॉर वोकल के नारे के बाद एक बार फिर से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोगों का रुझान दोबारा से अपने पुश्तैनी काम धंधे की ओर बढऩे लगा है। इससे कुंभकारों को अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर जो चिंताएं थीं, वे कुछ हद तक कम होती नजर आने लगी हैं।
मिट्टी को आकार देकर बर्तन बनाने वाले आसूराम का कहना है कि जब से चाइनीज आइटम बाजार में बेचे जाने लगे हैं, तब से ही मिट्टी के बने दीये और बर्तन सहित अन्य सामान की खरीदारी कम होने लगी थी। वहीं फैन्सी दीयो की मांग भी लोग करने लगे है। जो भले ही महंगे है, लेकिन दिखने में आकर्षक है।
सामान्य दीपक डेढ़ रुपए का, तो फैन्सी पांच का
बाजारों में इन दिनों मिट्टी से बने सामान्य दीपक जहां 10 रुपए में सात के हिसाब से बिक रहे हैं, वहीं फैन्सी छोटे दीपक की रेट पांच रुपए पीस है। इसमें बड़े दीपकों की कीमते तो 50 से 60 रुपए पीस है। इसमें शंख, कछुआ के सहित कई तरह की आकर्षक डिजाइनों में बनाए गए है, जो लोगों को अपनी और खींचते हैं। इनको एक बार उपयोग में लेने के बाद दोबार भी काम ले सकते हैं। दीपक बनाने वालों की माने तो जमाने के साथ बदलाव आता है, फैन्सी आइटमों के कारण आय पर असर आता है, लेकिन आज भी बड़ी आबादी तो मिट्टी से बने पारम्परिक दीपक ही दीवाली के लिए खरीदते हैं।
पहले होता था मिट्टी बर्तनो का उपयोग
पहले ज्यादातर लोग होली, दीपावली सहित अन्य पर्व और मांगलिक कार्यों में मिट्टी के बने बर्तन और अन्य सामान का ही उपयोग करते थे। जिससे उनकी अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी और परिवार का गुजर बसर भी हो जाता था। लेकिन जब से चाइनीज समान बाजार में बिकना शुरू हुआ तब से मिट्टी के बने दियों को तो लोग भूल ही गए थे और बर्तन सहित अन्य सामान खरीदने से लोग परहेज करने लगे थे।
सरकार करें मदद
मिट्टी के बने सामान की खरीदारी कम होने और मेहनत व समय ज्यादा लगने की वजह से नई पीढ़ी का भी रुझान धीरे-धीरे इस पारंपरिक काम से कम हो गया। कुंभकारों का कहना है कि लोकल फॉर वोकल का नारा देकर स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने की अपील तो सरकार आमजन से कर रही है। लेकिन अगर सरकार कुंभकारों के पुस्तैनी काम को बचाने के लिए समुचित सहायता मुहैया कराए तो बहुत से लोगों का रोजगार और परंपरागत काम भी बच जाएगा। साथ ही सरकार का लोकल फॉर वोकल का अभियान भी अपने उद्देश्य में सार्थक होगा।