बीकानेर, राजस्थान पल्स न्यूज़
राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर परिसर के वैज्ञानिकों ने आज विट्रिफाइड (फ्रोजन) भ्रूण स्थानांतरण तकनीक के माध्यम से देश का पहला घोड़े का बच्चा पैदा किया।
जानकारी देते हुए केंद्र के प्रभागाध्यक्ष डॉ. एससी मेहता ने बताया की इस बछड़े का नाम “राज-शीतल” रखा गया है। बछड़ा स्वस्थ है एवं उसका जन्म का वजन 20 किलोग्राम है। इस बछड़े के उत्पादन के लिए, घोड़ी को जमे हुए वीर्य (फ्रोजन सीमन) से गर्भित किया गया और भ्रूण को 7.5 वें दिन फ्लश कर अनुकूलित क्रायोडिवाइस का उपयोग करके विट्रिफाइ किया गया और तरल नाइट्रोजन में जमाया गया (फ्रिज किया गया)। पूरे 2 महीने के बाद भ्रूण को पिघलाया गया और गर्भावस्था प्राप्त करने के लिए सिंक्रनाइज़ड सरोगेट घोड़ी में स्थानांतरित किया गया। यह उपलब्धि केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. टीराव तालुड़ी, डॉ. सज्जन कुमार, डॉ. आरके देदड़, डॉ. जितेंद्रसिंह, डॉ. एम कुट्टी, डॉ. एससी मेहता, डॉ. टीके भट्टाचार्य एवं पासवान सहित टीम के अनुसंधान से प्राप्त हुई। इस टीम ने आज तक मारवाड़ी घोड़े के 20 भ्रूण और जांस्कारी घोड़े के 3 भ्रूणों को सफलतापूर्वक विट्रिफाई किया है।
वैज्ञानिकों की टीम को बधाई देते हुए आईसीएआर-एनआरसीई के निदेशक डॉ. टीके भट्टाचार्य ने कहा कि यह तकनीक समय की मांग है क्योंकि यह तकनीक देश में घोड़ों की घटती आबादी की समस्या से निपटने में मदद करेगी और भ्रूण के क्रायोप्रिजर्वेशन की इस तकनीक से भ्रूण को उपयोग के स्थान पर आसानी से ले जाया, निर्यात और आयात किया जा सकता है और जब भी संभव हो प्रत्यारोपित किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि घोड़ों के लिए यह देश में अपनी तरह की पहली उपलब्धि है।
इस अवसर पर आईसीएआर-एनआरसीई, बीकानेर के प्रभागाध्यक्ष डॉ. एससी मेहता ने वैज्ञानिकों की टीम को बधाई दी और देश में श्रेष्ठ अश्वों के संरक्षण और संवर्धन के लिए इस तरह की उन्नत और उपयोगी तकनीकों के विकास पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस तकनीक के प्रयोग से अच्छे घोड़ों के बच्चे 10 -20 अथवा कई वर्षों बाद भी जरूरत के अनुसार पैदा किए जा सकेंगे। यह तकनीक देश में अश्व संरक्षण में एक मिल का पत्थर सिद्ध होगी। उन्होंने वैज्ञानिकों को और अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित किया एवं उनकी सफलता की कामना की।