बीकानेर, टीम राजस्थान पल्स न्यूज।
बीकानेर के कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हुए है, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया है। कइयों ने जेल काटी, तो किसी को देश निकाला मिला, वहीं कुछ ऐसे भी थे जिन्हें नजरबंद किया गया। हालांकि आजादी की लड़ाई में इन सेनानियों के योगदान का बखान करना, सूरज को रोशनी दिखाने जैसा ही है। फिर भी उन सपूतों के लिए एक श्रद्धांजलि देने की छोटी कोशिश कर रहे हैं। 15 अगस्त के इस खास अवसर पर कुछ एक सेनानियों के योगदान का संक्षिप्त सार का समावेश यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।
खेलने की उम्र में ही आंदोलन में कूद पड़े : दाऊ लाल व्यास
कई सेनानी ऐसे भी हुए है, जो खेलने की उम्र में ही आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। उस समय उनको यह पता नहीं था कि आजादी कहते किसे है, लेकिन अंग्रेजों को भगाने की मंशा दिल में थी। ऐसे ही एक सेनानी हुए है दाऊलाल व्यास जिन्होंने महज 10 से 12 साल की उम्र में ही प्रजा मंडल की प्रभात फेरी में भागीदारी निभानी शुरू कर दी। उस दौर में उन्हें प्रजा मंडल में जोधपुर के बाल मुकुंद बिस्सा का ओजस्वी भाषण सुनने को मिलता था, तब उन्हें यह मालूम ही नहीं था कि स्वतंत्रता होती क्या है? लेकिन मन में था कि अंग्रेजों को भगाओ, शांत शासकों की ओर से जनता पर किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए आंदोलन में भाग लिया। बाद में जब बाल मुकुंद बिस्सा को जिन्दा जला दिया गया, तब से दाऊजी के मन में अंग्रेजो व शामंत हुकूमत के खिलाफ गुस्सा था। बीकानेर में उन्होंने प्रजा परिषद बनाई। इसमे उनके साथ रावतमल पारीक, रघुवर दयाल गोयल, गंगादास कौशिक आदि शामिल हुए। वहीं चार अक्टूबर 1936 को रतन बाई के मकान में बैठक हुई और सर्वसम्मति से वैद्य मघाराम को अध्यक्ष चुना गया, लेकिन 3 मार्च 1973 को मघारामजी को गिरफ्तार कर लिया, उस समय प्रजा मंडल के सदस्यों ने काला धागा बांधकर विरोध किया और 17 मार्च 1937 को ही देश निकाला हुआ, तब दाऊलाल व्यास, रामनारायण शर्मा, गंगादास कौशिक सहित उन्हें स्टेशन छोड़ने के लिए गए। दाऊलाल व्यास ने 1938 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में देवदन्त पंत के साथ भाग लिया। यहीं पर उनकी मुलाकात माणिक्यलाल वर्मा से हुई।
एक दौर ऐसा आया कि अंग्रेजों को लगने लगा कि सामंती शासकों की पकड़ ढीली होने लगी तब बटलर कमेटी गठित हुई।
घुटने नहीं टेके, तो खाने पड़े डंड़े
दाऊलाल व्यास, गंगादास कौशिक, रामनारायण शर्मा, गंगादत्त रंगा, रघुवरदयाल गोयल, चम्पालाल उपाध्याय, मालचंद सोनी ने अंग्रेजों व सामंत शासकों की अधीनता स्वीकार नहीं, उनके सामने घुटने नहीं टेके। साथ ही 22 जुलाई को रावतमल पारीक के घर बैठक हुई। उसमें प्रजा परिषद की स्थापना की गई। प्रजा परिषद का कार्यालय रेलवे स्टेशन के सामने था, जिस पर तिरंगा फहरा रहा था।
उसे पुलिस ने उतार कर कार्यालय में तोड़-फोड़ भी की। उसी दिन 29 जुलाई 1942 को महाराजा गंगासिंह बीकानेर रेलवे स्टेशन पर उतरे थे। तब दाऊलाल व्यास ने महाराजा गंगासिंह को काला झंड़ा दिखाया, इसी दौरान पुलिस ने उन्हें पकड़ कर महकमा खास गृह मंत्री के समक्ष पेश किया, जहां पर दाऊजी को पुलिस ने लाठियों से पीटकर छोड़ दिया। वहीं रघुवर दयाल को देश निकाला दे दिया, उन्हें दाऊलाल व्यास और गंगादास कौशिक देशनोक तक छोड़ने के लिए गए। रघुवर दयाल और कौशिक को गिरफ्तार करने पर दाऊलाल ने संगठन को आगे बढ़ाया।
जब हुआ लाठीचार्ज
दुधवा खारा आंदोलन के चलते जस्सूसर गेट पुलिस की छावनी बन गया और किसानों का जब जुलूस निकला तो लाठीचार्ज हुआ। इसमें मघाराम जी, दाऊलाल, रामनारायण शर्मा सहित कार्यकर्ता शामिल हुए। आंदोलन को पुलिस ने लातों, जूतों से कुचल दिया। वहीं 1946 में एक बार फिर से प्रजा परिषद के अध्यक्ष कर्मानंद जी के स्वागत में तिरंगा फहराने पर पुलिस छीना-झपटी का विरोध करने पर दाऊलाल को पीटा गया, इसमे वो घायल हो गए।
वहीं 26 जून को रतन बिहारी पार्क में सभा हुई, इसमें लाठीचार्ज के दौरान दाऊलाल व्यास के सिर में चोट आई और पुलिस उन्हें पकड़ कर ले गई। इसी दौरान हीरालाल शर्मा की गिरफ्तारी हुई। वर्ष 1947 के चना कांड में रियासत के गृहमंत्री ठाकुर सिंह के खिलाफ मामला चला तो मेघराज पारीक के साथ मिलकर दाऊजी व्यास ने सबूत जुटाए और उनको सरदार बल्लभ भाई पटेल तक पहुंचाया। ( दाऊलाल व्यास के पौत्र से मिले दस्तावेजों पर आधारित)
सेनानी का प्रपत्र भरने से कर दिया इंकार : पं. बंशीधर बिस्सा
देश की आजादी में सैकड़ों सेनानियों ने अपना योगदान दिया है। इसमें कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता का आंदोलन लड़ रहे सेनानियों को गुप्त रूप से सहयोग किया और कभी सरकार से कुछ भी परिलाभ नहीं लिया और ना ही कभी मांग रखी। ऐसे विरली शख्सियत थे पंड़ित बंशीधर बिस्सा। सन् 1945 में प्रजा परिषद के सदस्य बने और 1942 में बीकानेर राज्य प्रजा परिषद की स्थापना का मुहूर्त भी आपने ही दिया था। बाद मे आप कांग्रेस के सदस्य भी रहे। आजादी के बाद जब राज्य सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों को चिन्हित करने के लिए प्रपत्र भरवाए तो उन्होंने कहा कि-“मैंने जो कुछ किया अपना धर्म और कर्तव्य समझकर किया, किसी आर्थिक लाभ, सम्मान या पुरस्कार के लिए नहीं किया” प्रपत्र भरने से इंकार कर दिया। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को जो गुप्त सहयोग दिया, स्वयं मैदान में रहकर प्रजा परिषद से जुड़े रहते, जो कार्य किए और रियासती सरकार के गुप्त रहस्य सेनानियों तक जिस तरह से पहुंचाएं वो उनके जीवन का स्वर्णिम काल है। उनकी त्याग की वृत्ति श्रद्धा और प्रेरणादायी है। बिस्सा की तरह ही उनके परम मित्र दाऊ लाल आचार्य ने भी सेनानी का प्रपत्र भरने से इंकार कर दिया था।
साभार : भवानी शंकर व्यास “विनोद” के आलेख से
जब घर में ही कर दिया था नजर बंद : जीवण लाल डागा
बीकानेर मूल के ही जीवण डागा ने 1942 से 1945 तक दुधवाखरा आंदोलन में लगातार भागीदारी निभाई। वर्ष 1942 में ही प्रजा परिषद के सदस्य बनने के बाद उन्हें घर में नजर बंद कर दिया गया था और उनके घर के बाहर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया। वर्ष 1943 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था, इसमें जीवण लाल डागा को गिरफ्तार कर लिया गया था। उनके घर की तलाशी में तिरंगा झंड़ा बरामद हुआ था। अप्रेल 1945 में नागौर कांफ्रेन्स में भी जीवण लाल डागा शामिल हुए। ऐसे में वर्ष 1942 से 1945 तक स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई है।
(जैसा कि बीकानेर राज्य के राजनैतिक आंदोलन का इतिहास पुस्तक में वर्णित है)
बीकानेर के इन सेनानियों ने दिखाया था साहस
आजादी के आंदोलन में कई सेनानियों ने अदम साहस दिखाया था। इसमें बीकानेर के कई सपूत शामिल हुए। यहां जाने इतने है बीकानेर के सेनानी।
दाऊलाल व्यास, रामनारायण शर्मा, हीरालाल शर्मा, रघुवर दयाल गोयल, जीवण लाल डागा, मूलचंद पारीक, अम्बालाल माथुर, किशन गोपाल शर्मा, गंगादास कौशिक, गंगादास रंगा, चम्पालाल उपाध्याय, लक्ष्मी दास स्वामी, शौकत उस्मानी, नानक सिंह, सुरेन्द्र शर्मा, एसएन हर्ष, मालचंद सोनी, मुल्तान चंद, सत्यनारायण हर्ष और झंवरलाल हर्ष (यह दोनों गोवा मुक्ति आंदोलन से जुड़े थे)।