Sunday, September 22

अलवर, राजस्थान पल्स न्यूज

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने हिंदू धर्म को सबके कल्याण की कामना करने वाला विश्व धर्म बताते हुए कहा कि हिंदू का मतलब विश्व का सबसे उदारतम मानव है जो सब कुछ स्वीकार करता है। इसके साथ ही उन्होंने स्वयंसेवकों से सामाजिक समरसता के माध्यम से बदलाव लाने का आह्वान करते हुए कहा कि हमें छुआछूत के भाव को पूरी तरह मिटा देना है। डॉ. भागवत अलवर के इन्दिरा गांधी खेल मैदान में स्वयंसेवकों के एकत्रीकरण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

कार्य के पीछे विचार क्या ?
उन्होंने कहा- अगले साल संघ का 100 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है। संघ की कार्य पद्धति लंबे समय से चली आ रही है। हम कार्य करते हैं तो उसके पीछे विचार क्या है? यह हमें ठीक से समझ लेना चाहिए। अपनी कृति के पीछे यह सोच हमेशा जागृत रहनी चाहिए। हमें देश को समर्थ करना है।

हिन्दू ही देश के कर्ताधर्ता
डॉ. भागवत ने कहा ‘हमे हमारे राष्ट्र को समर्थ करना है। हमने प्रार्थना में ही कहा है कि यह हिंदू राष्ट्र है क्योंकि हिंदू समाज इसका उत्तरदायी है। इस राष्ट्र का अच्छा होता है तो हिंदू समाज की कीर्ति बढ़ती है। इस राष्ट्र में कुछ गड़बड़ होता है तो इसका दोष हिंदू समाज पर आता है, क्योंकि वे ही इस देश के कर्ताधर्ता हैं। राष्ट्र को परम वैभव संपन्न और सामर्थ्यवान बनाने का काम पुरुषार्थ के साथ करने की आवश्यकता है और हमें समर्थ बनना है, जिसके लिए पूरे समाज को योग्य बनाना पड़ेगा।’ 

मोहन भागवत ने बताई हिंदू की परिभाषा
जिसे हम हिंदू धर्म कहते हैं यह वास्तव में मानव धर्म है, विश्व धर्म है और सबके कल्याण की कामना लेकर चलता है। हिंदू का मतलब विश्व का सबसे उदारतम मानव, जो सब कुछ स्वीकार करता है, सबके प्रति सद्भावना रखता है। पराक्रमी पूर्वजों का वंशज है जो विद्या का उपयोग विवाद पैदा करने के लिए नहीं करता, ज्ञान देने के लिए करता है। हिंदू धन का उपयोग मदमस्त होने के लिए नहीं करता, दान के लिए करता है और शक्ति का उपयोग दुर्बलों की रक्षा के लिए करता है। यह जिसका शील है, यह जिसकी संस्कृति है वह हिंदू है। चाहे वह पूजा किसी की भी करता हो, भाषा कोई भी बोलते हो, किसी भी जात-पात में जन्मा हो, किसी भी प्रांत का रहने वाला हो, कोई भी खानपान रीति रिवाज को मानता हो। ये मूल्य और संस्कृति जिनकी है, वह सब हिंदू हैं।

परिवार के संस्कारों को खतरा
डॉ. भागवत ने कहा कि भारत में भी परिवार के संस्कारों को खतरा है। मीडिया के दुरुपयोग से नई पीढ़ी बहुत तेजी से अपने संस्कार भूल रही है। इसलिए सप्ताह में एक बार निश्चित समय पर अपने कुटुंब के सब लोगों को एक साथ बैठना। अपनी श्रद्धा अनुसार घर में भजन-पूजन करना, उसके पश्चात घर में बनाया हुआ भोजन साथ में करना। समाज के लिए कुछ न कुछ करने का संकल्प परिवार का हर सदस्य ले।

स्वदेशी पर दिया जोर
अपने घर में स्वदेशी से लेकर स्व गौरव तक सारी बातें हैं। अपने देश में बनता है, वह बाहर देश का नहीं खरीदना यदि जीवन के लिए आवश्यक है तो अपनी शर्तों पर खरीदना। साथ ही अपने जीवन में मितव्ययिता को अपनाना होगा। समाज सेवा के कार्यों में समय लगाना। यह समाज पर उपकार नहीं है हमारा कर्तव्य है। नागरिक अनुशासन हमारा होना चाहिए। हम इस देश के नागरिक हैं। हमें नागरिकता का बोध होना ही चाहिए।

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